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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 06)





"ये इतना घना अंधेरा कहाँ से आ गया?" शिल्पी इस अप्रत्याशित घटना को देखकर डर गई थी, अंधेरे से डर के मारे उसका दम घुटने लगा।

"हमे भी समझ न आ रहा अभी इतनी चमक-धमक वाले स्थान पर अंधेरा कैसे छा गया!" अमित का हाथ पकड़े हुए केशव बोलता है। अब उनकी आँखें अंधेरे में हल्का-फुल्का देख सकती थी।

"मुझे किसी अप्रिय घटना के संकेत मिल रहे थे पर तुम लोगो को तो मानना ही नही है।" जय सपाट स्वर में चिंता जताते हुए बोला।

"अभी यहां से बाहर निकलने का सोचो फिर तुम्हारी सब बात मानूँगा।" अमन, जय को पकड़कर समझाने के स्वर में  कहता है।

"गाइज़ यह अंधेरा, नॉर्मल अंधेरे से कुछ अजीब नही लग रहा?" शिवि सबसे पूछती है। घबराहट उसके मन में भी घर किये जा रहा था।

सब एक साथ होने से अभी सबकी हिम्मत बनी हुई थी। शिल्पी की आँखे अब भी विस्तार को ढूंढ रही थी। अब अमन ने भी जय की बात मान ली थी इसलिए सब मुख्य द्वार की दिशा में भागे। हालांकि शिल्पी विस्तार को ढूंढे बिना नही जाना चाहती, फिर भी मजबूरी में उसे उनके साथ चलना पड़ा। क्या पता विस्तार किसी अन्य मार्ग से  बाहर चला गया हो। सब दौड़ते दौड़ते थक गए परन्तु वे किस ओर से आये थे उन्हें यह ज्ञात न था शायद मुख्य द्वार कहीं और चला गया था, यह कक्ष पहले से भी अधिक वृहद  प्रतीत हो रहा था। दीवार के पीछे एक ओर से हल्की रौशनी आ रही थी, सब उसी ओर तेजी से भागे।

अचानक केशव के पैरों के नीचे कुछ आ जाता है उसका पैर पड़ते ही चटाक के तेज स्वर के साथ कुछ टूटने का स्वर उत्पन्न हुआ। केशव को प्रतीत हुआ जैसे उसकी हड्डियां टूट रही हो, टूटा हुआ वह टुकड़ा कहीं दूर जा गिरा। सभी एक दूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते जा रहे थे, जैसे-जैसे उनके कदम बढ़े, वैसे-वैसे ही दिल की धड़कनें भी बढ़ती ही जा रही थी। उन सभी के मन में एक अनजाना सा डर घर करते जा रहा था परंतु इस समय सबके सब स्वयं को बहादुर सिद्ध करने में लगे हुए थे।

"अमन!" आँसू धीमे स्वर में चीखी। उसके पैरों से कुछ टकराया जो टकराने के कारण घूमते हुए कुछ आगे चला गया। अमन धीरे से जाकर आँसू को गले लगा लिया, आँसू ने कोई विरोध नही किया बस चुपचाप खड़ी रही। सब जिस ओर बढ़ रहे थे उधर मानों वह कक्ष भी बढ़ता भी बढ़ता चला जा रहा था अन्यथा अब तक ये सभी सात-आठ सौ मीटर चल चुके थे। बाहर से किला इतना विशाल भी प्रतीत नही होता था फिर कैसे? जिसे ही उन्हें इसका भान हुआ शरीर में झुरझुरी भर गई। सब के साथ होने के बावजूद मन में डर भर गया, उनके माथे के पीछे कान के पास की नसें छटपटाने लगी। सभी तेजी से जिस दिशा में से आये थे उसी दिशा में भागने लगे। उनके कदमों के साथ उनके सांसो और धड़कनों की आवाज भी बढ़ती जा रही थी। पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था, अब तक वे सभी एक किलोमीटर से ज्यादा दौड़ चुके थे परंतु अपने पूर्व स्थान से कुछ ही कदम दूर दिखाई दिए।

"यह सब क्या चल रहा है!"  अमित अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर चीखा। "कोई है यहां? क्या चाहता है?"

सब पहले से ही डरे हुए थे, अमित के इस हरकत के कारण और बुरी तरह डर गए। चारो तरफ से रहस्यमय अंधेरा गहराता जा रहा था, इस वातावरण में सब स्वयं को अत्यंत निर्बल महसूस कर रहे थे अंततः सबने यह मान ही लिया कि यही अंत है अब वे बाहरी दुनिया में नही जा सकते अगर कोई नही मारने नही आया तो भी भूख-प्यास से एक दिन मर ही जायेंगे इसलिए अब सबके साथ कुछ अंतिम पल बिताकर ही मरा जाए।

"शिवि!" अमन के गले से स्वर उभरा। स्वर इतना धीरे था कि वह स्वयं भी ठीक से न सुन पाया। "शिवि!" वह थोड़ा जोर से बोला।

"क्या हुआ रे!" एक निश्चित मौत का पता लगने के बावजूद शिवि माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए हँसकर बोली।

"माफ करना यार!" अमन अपना सिर झुका लेता है।

"अब तू क्यों माफी मांग रहा है यार! वैसे तो अकड़ू ही अच्छा लगता है।" सभी उसके व्यवहार परिवर्तन से चकित थे, उसने विस्तार के अतिरिक्त शायद ही किसी हमउम्र से कभी सॉरी बोला होगा।

"देख भाई अमन! जो होना था वो हो ही गया, अब क्यों लोड ले रहा। तब से मैंने कहा तो किसी ने न सुना अब अगर यही अंत है तो इतनी फिक्र क्यों!" जय शिवि के पास आकर अमन से बोला जिसपर अमन धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की, हालांकि वह चाहकर भी मुस्कुरा न पाया।

"अंत की फिक्र किसी को नही है जय! बस विस्तार साथ होता तो…!" शिल्पी गंभीर स्वर में धीरे से बोली।  "साथ जी नही पाए, साथ मर तो लेते।" ये शब्द उसके दिल में ही रह गए, वह विस्तार से इतना प्यार करती थी कि जिसे वह कभी बयां न कर पाती। आज इस डर और अंधेरे से भरे भयानक समय में, जिसमें मृत्यु किस क्षण आ जायेगी इसका कोई पूर्व ज्ञान नही है वह फिर भी स्वयं से पहले विस्तार की चिंता कर रही थी।

"यार आप लोग हमेशा मरने-वरने की बात न किया कीजिये, देखिए शायद उधर से कोई मार्ग है।" केशव, अमित के कंधो पर हाथ रख उठता हुआ बोला। एक ओर से हल्की रौशनी आ रही थी, सब अपने कपड़े झाड़ते हुए उठे, अब उनका डर कुछ हद तक कम हो हुआ। जब सबने यह निश्चय कर लिया कि अगर मृत्यु आयी तो साथ मरेंगे फिर मन में कैसा डर! परन्तु ये घबराहट, ये अकुलाहट, मन की व्याकुलता जीवन के ऐसे क्षणों में कभी साथ नही छोड़ती।

डर..! डर ही तो जीना सिखाता है। डर ही विश्वास सिखाता है, डर है तो ज़िंदगी है। कुछ खोने का डर.. कुछ होने का डर और जब डर सताता है  तभी इंसान सावधान होता है। डर तो उजाले में खत्म नही होता, इस घुप्प अंधेरे में तो सिर्फ डर का ही बसेरा है।

आँसू के पैर पर ठोकर लगी, वह जोर से चीखी अब तक उनकी आँखें अंधेरे में देखने मे अभ्यस्त हो चुकी थी। जैसे ही आँसू को वह वस्तु दिखी जिससे आँसू को ठोकर लगी थी वह जोर से चीख उठी। अमन उसे जाकर संभालने लगा। पर जैसे ही उन्होंने उस वस्तु को देखा उनकी धड़कनों का रफ्तार फिर से बढ़ने लगा। घबराहट के कारण उनकी साँसे तेज होने लगी वे सभी लंबे कदमों से उस ओर भागे जिधर से हल्की रौशनी आ रही थी।

अचानक छत से कुछ टूटने की आवाज हुई, जय ने देखा कुछ ऊपर से शिवि पर गिरने वाला है वह चिल्लाया पर उसकी चीख नही उभरी, दौड़ना चाहा पर नही दौड़ पाया। लंबे कदम भरकर शिवि को धक्का दे दिया जिससे वह नीचे गिर गयी और ठीक उसी वक़्त वह गिरती हुई नुकीली वस्तु उसके झुके हुए पीठ को बीचो-बीच चीरकर जमीन में धंस गयी। 'अहह….!' जय की भयानक चीख ने पूरे कमरे को हिला दिया, उसकी आँखों में तेज के कारण अश्रु भरे हुए थे। लहू उसके सीने से रिसते हुए जमीन पर आकर एक ओर बह चला, जय ने हौले से मुस्कुराने की कोशिश की। अगले ही क्षण उसके प्राण पखेरू उड़ गए, उसका शरीर अब भी उसी प्रकार झुका हुआ था, सीने से लहू उसी प्रकार बह रहा था जो सरकता हुआ जमीन की ओर आ रहा था। किसी में हिम्मत न हुई कि वह जय को छू भी सके, जय का चेहरा पूरी तरह काला पड़ चुका था। शिवि जैसे ही जय को इस हाल में देखी वह पागल सी हो गयी। वह जोर जोर से चीखना चाहती थी पर उसकी आवाज जैसे गले मे ही खो गयी थी वह चाहकर भी नही रो पा रही थी, उसकी आँखों आँसुओ से भर गई थी, आँसुओ की धार बह चली जमीन पर टप के स्वर के साथ बूंदे गिरी। इस अप्रत्याशित घटना से सबकी घिग्घी बन्ध गयी थी, सभी जोर जोर से चीखना चाहते थे पर ऐसा कोई न कर पाया।

"तुम जानना चाहते हो न मैं क्या हूँ? क्या चाहता हूँ शीघ्र ही जान जाओगे।" एक रहस्यमयी स्वर कक्ष में गूंजा।

"देखो हमें जाने दो बदले में तुम्हे जो चाहिए दूंगा।" अमन जोर से चिल्लाकर बोलना चाहा पर उसके गले ने उसका साथ छोड़ दिया, वह बेबस सा जय की लाश को देख रहा था।

"हमें जो चाहिए, हम वही हासिल करते हैं मूर्ख.. हाहाहा!" किले में अट्ठहास का स्वर गूँजने लगा। इसी के साथ अंधेरा और भी गहरा हो गया। शिवि के पांव तो जैसे जम गए थे वह हिल तक न पा रही थी। अब सबने साक्षात मृत्यु को देख लिया था। धड़कनों की रफ्तार अब भी बढ़ती जा रही थी अब इस कक्ष में तेज सांसो और बढ़ती धड़कनों के स्वर के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर न था।

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विस्तार को अब धीरे-धीरे होश आ रहा था। वह जैसे किसी अलग ही दुनिया में था। उसके चारों तरफ अंधेरे का एकक्षत्र राज्य था। वह धीरे से आंखों को मलता हुआ उठा और छोटे कदमों से एक ओर बढ़ चला।

"तुम यहाँ से भागने की कोशिश कर रहे हो ब्रह्मेश?" अंधेरे में से एक गूंजा। विस्तार विस्मृत होकर आवाज की दिशा में देखता रहा परन्तु उसी कुछ दिखाई न दिया।

"कोई भी अपने नियति से नही भाग सकता पुत्र!" अब की बार इस स्वर में प्रेम मिश्रित था। विस्तार अपने वास्तविक माता-पिता के न होने पर भी कभी भी माता-पिता के प्रेम से वंचित नही रहा। उसे एक बहुत खूबसूरत परिवार मिला परन्तु इस प्रेम मिश्रित स्वर में एक अलग ही आकर्षण था।

"अ.. आप कौन हैं?" विस्तार पूछना तो बहुत कुछ चाहता था परन्तु मन में अब भी अजीब सा डर भरा  हुआ था। वह एक कदम आगे बढ़ा उसके बदन में झुरझुरी भर गई वहां कोई स्थल नही था। वह गिरने लगा, गिरते हुए जोर जोर से चीखने की कोशिश करने लगा और फिर वहीं जाकर गिरा जहाँ से वह उठा था। यह कोई विचित्र भूलभुलैया सी जगह थी यह ख्याल आते है उसके पूरे बदन में सिहरन दौड़ गयी।

"हम कौन हैं यह महत्वपूर्ण नही है पुत्र! अभी सिर्फ इतना महत्वपूर्ण है कि तुम सिर्फ ये जानो कि तुम कौन हो?" इस बार यह स्वर विस्तार के बिल्कुल पास से आया था फिर भी वह आसपास किसी के होने की उम्मीद नही कर सकता था।

"पर मैं ये कैसे पता करूँ कि मैं कौन हूँ?" विस्तार डरते हुए धीमे स्वर में बोला।

"हमारी बात पर विश्वास करके।"

"परन्तु मैं आपका पुत्र कैसे हो सकता हूँ? मैं तो इंसानी बच्चा हूँ और आप क्या हो पता ही नही!" विस्तार उस रहस्यमयी शख्स को जो अंधेरे में था उसको जानने के लिये बेताब हो रहा था।

"हाहाहा… हम क्या हैं? हम वो हैं जो तुम्हारे चारों ओर फैला हुआ है।" स्वर में प्रेम का स्थान अट्ठहास ने ले लिया। जैसे वह रहस्यमयी शख्स विस्तार की मंशा भांप गया हो।

"ये कौन सी जगह है!" विस्तार धीरे से बोला।

"हम यहाँ तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर देने नही आये। हम बस चाहते थे कि तुम स्वयं की इच्छा से हमारा साथ दो। यदि इच्छा ना भी हो तो हमारा साथ देना ही पड़ेगा।" अंधेरे में उसके बिल्कुल पास से कड़क स्वर उभरा। उसके चारों तरफ घना अंधेरा था और उफनती नदी का शोर सुनाई दे रहा था।

"न..ही नही! तुम ऐसा नही कर सकते।" विस्तार की चीख शून्य में फैल गयी।

"मैं कुछ भी कर सकता हूँ।" अपनी क्रूर मुस्कान बरकरार रखे वह स्वर गुंजा।

"यह कैसे हो सकता है! म..मैं...?" विस्तार पागल सा होने लगा था। "यह कौन सी जगह है?"

"तुम्हारा मन! अब तुम चाहो न चाहो पर देखो क्या बन चुके हो। अब मैं स्वतंत्र हो चुका हूँ हाहाहा।" वह स्वर गूंजता हुआ बहुत दूर चला गया। विस्तार हाँफते हुए हड्डियों के ढेर पर से उठा, उसका जिस्म और उसकी आंखें सुर्ख काली पड़ चुकी थी, होंठो पर एक विचित्र मुस्कान थी।

क्रमशः…..

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6 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:07 PM

Nice part

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Farhat

25-Nov-2021 06:30 PM

Good

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Barsha🖤👑

25-Nov-2021 06:12 PM

बहुत ही रोमांचक कहानी

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